गर्भपात की अनुमति को लेकर हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, जानें क्या हैं नए निर्देश
यह नियम इसलिए बनाया गया है ताकि गर्भपात की प्रक्रिया सुरक्षित तरीके से की जा सके और महिला के स्वास्थ्य को किसी प्रकार का नुकसान न पहुंचे।
- 20 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति
- 24 सप्ताह तक दो डॉक्टरों की सहमति जरूरी
- पुलिस और चिकित्सा विभाग को दिए गए निर्देश
Madhya Pradesh High Court: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में गर्भपात को लेकर कुछ नए और अहम निर्देश जारी कर दिए है। खासतौर पर दुष्कर्म पीड़िताओं के लिए यह निर्देश राहत की खबर लेकर आए है।कई बार ऐसी घटनाएं सामने आती हैं,
जहां पीड़िताओं को गर्भपात के लिए कानूनी और सामाजिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसी को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने यह फैसला सुना दिया है जिससे जरूरतमंद महिलाओं को न्याय और समय पर चिकित्सा सहायता मिल सके।
20 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति
अगर गर्भ 20 सप्ताह तक का है, तो इसे एक पंजीकृत डॉक्टर की सलाह पर समाप्त किया जा सकता है। इसके लिए पीड़िता को किसी कानूनी प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ेगा। कोर्ट के मुताबिक,यह अधिकार महिला को दिया जाना चाहिए जिससे वह खुद निर्णय ले सके कि गर्भावस्था को जारी रखना है या नहीं। यह प्रावधान खासकर उन पीड़िताओं के लिए है, जो किसी अप्रत्याशित घटना या अपराध का शिकार हुई हैं।
24 सप्ताह तक दो डॉक्टरों की सहमति जरूरी
यदि गर्भावस्था 20 से 24 सप्ताह के बीच है, तो मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 की धारा 3 के तहत दो पंजीकृत डॉक्टरों की सहमति आवश्यक होगी। इस मामले में, महिला को हाई कोर्ट की अनुमति की जरूरत नहीं होगी
, लेकिन यह निर्णय पूरी तरह से मेडिकल विशेषज्ञों पर निर्भर होगा। यह नियम इसलिए बनाया गया है ताकि गर्भपात की प्रक्रिया सुरक्षित तरीके से की जा सके और महिला के स्वास्थ्य को किसी प्रकार का नुकसान न पहुंचे।
24 सप्ताह से अधिक के गर्भपात के लिए हाई कोर्ट की अनुमति जरूरी
अगर गर्भ 24 सप्ताह से अधिक का है तो मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 के तहत इसे समाप्त करना कानूनी रूप से अनुमति प्राप्त किए बिना संभव नहीं किया जाएगा।इस स्थिति में महिला को हाई कोर्ट में याचिका दायर करनी होगी
और तभी गर्भपात कराया जा सकता है। हाई कोर्ट का यह निर्देश उन मामलों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जहां पीड़िता को देर से पता चलता है कि वह गर्भवती है या किसी जटिल परिस्थिति के कारण समय पर फैसला नहीं ले पाई।
क्यों लिया गया यह फैसला?
इससे पहले, कई दुष्कर्म पीड़िताओं को 24 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था होने पर गर्भपात के लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था। इसके कारण उन्हें काफी मानसिक और शारीरिक पीड़ा से गुजरना पड़ता था कोर्ट ने यह फैसला उन्हीं घटनाओं को ध्यान में रखते हुए लिया है जिससे पीड़िताओं को राहत मिल सके और वे बिना अनावश्यक कानूनी अड़चनों के अपनी जिंदगी आगे बढ़ा सकें।
पुलिस और चिकित्सा विभाग को दिए गए निर्देश
हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पुलिस और चिकित्सा विभाग को इन गाइडलाइनों का सख्ती से पालन करना होगा। पीड़िता और उसके परिवार को किसी भी तरह की असुविधा का सामना न करना पड़े, यह सुनिश्चित करना प्रशासन की जिम्मेदारी होगी।
डॉक्टरों को भी यह निर्देश दे दिए गय है कि वे संवेदनशीलता के साथ इन मामलों को हैंडल करें और पीड़िता को आवश्यक चिकित्सा सहायता प्रदान करें।
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