बचपन से लेकर द्वारका पीठ के शंकराचार्य बनने की कहानी ,कैसे बदला जीवन, आप भी जानिए

नियति को क्या मंजूर होता है इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता नियति क्या से क्या कर देती है जी हां नरसिंहपुर जिले में जन्म एक साधारण परिवार का बालक आज द्वारका पीठ का शंकराचार्य बन गए हैं आइए आइए आपको बताते हैं  पंडित रमेश अवस्थी कैसे बन गए (shankaraachaary sadaanand sarasvatee mahaaraa) शंकराचार्य सदानंद सरस्वती महाराज जो आज  द्वारका पीठ के शंकराचार्य है 

shankaraachaary sadaanand sarasvatee mahaaraa कक्षा सातवीं तक पढ़े,12 साल की उम्र में रमेश अवस्थी ने छोड़ा घर

shankaraachaary sadaanand sarasvatee mahaaraa नरसिंहपुर जिले की गोटेगांव तहसील के अंतर्गत आने वाले बरगी गांव में सन 1958 में जन्मे सदानंद सरस्वती इन के बचपन का नाम पंडित रमेश अवस्थी था और यह एक मध्यम परिवार में इनका जन्म हुआ था, इनके पिता पंडित विद्याधरा अवस्थी  जिले के एक प्रसिद्ध राज वैद्य और किसान थे इनकी माता मनकुंवर बाई थी। 

स्कूली दोस्तों से झगड़ा और टीचर की डांट बदला जीवन

shankaraachaary sadaanand sarasvatee mahaaraa शंकराचार्य सदानंद सरस्वती अपने परिवार में के 2 बड़े भाई हैं सबसे बड़े भाई महेश कुमार अवस्थी बताते हैं, कि कक्षा सातवीं मैं जब वह पढ़ते थे तब साथ में पढ़ने वाले छात्रों से उनका दोस्तों से आपस में झगड़ा हो गया और उस झगड़े के चलते उनको टीचर ने डांट दिया था फिर क्या था रमेश गुस्से में अपने घर आए और बोला कि अब हमें यह पढ़ाई नहीं पढ़नी है।

 हम अगर पढ़ाई करेंगे तो संस्कृत की पढ़ेगे  वह भी झोतेश्वर मैं 12 साल की उम्र में रमेश अवस्थी ने शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के यहां इनके माता-पिता और परिजनों को यह लग रहा था कि सदानंद गुस्से में है इसलिए ऐसा बोल रहा है मगर नियति को कुछ और मंजूर था।

उनके बड़े भाई आगे बताते हैं कि उन्हें पता ही नहीं चला और गांव में आए एक साधु के साथ रमेश बगैर किसी को बताए झोतेश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (swami swaroopanand saraswati) के पास पहुंच गए और जगतगुरु शंकराचार्य से संस्कृत की शिक्षा लेने की बात करते हुए आश्रम में ही रहने लगे इनके बड़े भाई बताते हैं कि बचपन से ही रमेश को खेलते समय शिवलिंग बनाना और उन शिवलिंग पर फूल पुष्प चंदन लगाकर पूजन करना उसे बड़ा अच्छा लगता था।

ब्रह्मलीन हुए जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (swami swaroopanand saraswati) के सानिध्य में सदानंद सरस्वती ने कठिन जब तक शास्त्रों का अध्ययन किया है आज लगभग 62 साल की उम्र में वे हिंदू सनातन धर्म के सर्वोच्च गुरु शंकराचार्य बन गए हैं आपको बता दें कि द्वारका पीठ के नए शंकराचार्य सदानंद सरस्वती 4 भाषाओं का हिंदी,अंग्रेजी ,संस्कृत, गुजराती का ज्ञान रखते हैं।  इसके साथ ही कंप्यूटर के नालेज में भी महाराज जी  पकड़ रखते हैं महज सातवीं तक पढ़ने वाले शंकराचार्य सदानंद सरस्वती ने हिंदी संस्कृत गुजराती अंग्रेजी भाषाओं में अब तक तकरीबन एक दर्जन किताबें भी लिख चुके हैं।

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नरसिहपुर झोतेश्वर, बनारस से लेकर द्वारका तक का सफर

shankaraachaary sadaanand sarasvatee mahaaraa सदानंद सरस्वती महाराज सन 1970 में झोतेश्वर पहुंचे थे उनका बचपन का नाम रमेश अवस्थी था उन्होंने संस्कृत में पढ़ाई शुरू कर दी और 1975 से लेकर 1982 तक झोतेश्वर में रहकर राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर सेवा भाव , धर्म ग्रंथों व सनातन धर्म के प्रति उनकी जिज्ञासा और आस्था को देखकर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती प्रभावित हुए और  उन्हें अध्ययन के लिए  बनारस भेजा दिया।  जहां तकरीबन 8 साल वेद पुराण अन्य धर्म ग्रंथों की धर्म शास्त्रों की शिक्षा ग्रहण कि इसके बाद 1990 में शंकराचार्य के आदेश पर वह द्वारका पहुंचे वहां उन्होंने 4 भाषाओं में निपुणता हासिल की 1995 में उन्हें शंकराचार्य जी का प्रतिनिधि भी नियुक्त किया गया था।

दंड शिक्षा के बाद बने  सदानंद सरस्वती महाराज

ब्रह्मलीन हुए जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने वर्ष 2003 में रमेश अवस्थी उर्फ सदानंद महाराज को दंड शिक्षा के लिए बनारस भेजा जहां पर अपने परिजनों का मोह त्याग ने परिजनों का गंगा में तर्पण करने सांसारिक भोगों के भाव चेहरे पर ना आए कठोर निर्णय लेने की बात कहि ,(shankaraachaary sadaanand sarasvatee mahaaraa) जिसे सदानंद सरस्वती ने स्वीकार किया और गंगा में जाकर अपने परिजनों का तर्पण भी किया। इसके साथ उन्होंने ब्राह्मणों को भोजन आदि  कराया फिर  दंड शिक्षा देकर उनका नामकरण किया गया इसके  बाद से वह रमेश अवस्थी से सदानंद सरस्वती बन गये

कई  पुस्तकें लिख चुके सदानंद सरस्वती

शारदा-द्वारका पीठ के नए शंकराचार्य सदानंद सरस्वती, हिंदी, संस्कृत, गुजराती व अंग्रेजी भाषा में अब तक करीब एक दर्जन किताब भी  लिख चुके हैं। जिसका संग्रह परमहंसी गंगा आश्रम में है।  इनकी सबसे प्रमुख कृति देवी आराधना पर आधारित सौंदर्य लहरी बताई जाती है। जिसे मूल रूप से करीब ढाई हजार साल पहले आद्य शंकराचार्यजी ने संस्कृत में लिखी थी।  (shankaraachaary sadaanand sarasvatee mahaaraa इसका हिंदी में अनुवाद  किया, ताकि लोग आसानी से  पढ़ सके। इनके सनातन धर्म की सभी कृतियों, ग्रंथों आदि को डिजिटल  करवा दिया हे ताकि भविष्य की पीढ़ी तकनीक का इस्तेमाल कर अपनी संस्कृति, परंपरा को सहजता से जान सके।

मठों का जीणरेद्धार कराया

द्वारका में शंकराचार्य के प्रतिनिधि रूप में रमेश अवस्थी ने शारदा व ज्योतिष पीठ बदि्रकाश्रम के अंतर्गत  आने वाले सभी  मठ थे, उनके पुनरुत्थान, जीणरेद्धर का बीड़ा उठाया था । करीब सौ से अधिक मठों का कायाकल्प अपने निर्देशन में किया।  इनके शिष्य की इन विलक्षण क्षमताओं को देख आखिकार गुरू स्वरूपानंद सरस्वती जी ने इन्हें दंड शिक्षा देने के लिए चयनित किया।

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