Maharashtra Cabinet Ministers : देवेंद्र फडणवीस की टीम में भ्रष्टाचार के आरोप वाले मंत्री को मौका,पुराने मंत्रियों का पत्ता कटा जानिए

आइए इस विस्तार की पूरी कहानी पर नजर डालते हैं और समझते हैं कि महाराष्ट्र में क्या कुछ बदलने वाला है।

Maharashtra Cabinet Ministers : महाराष्ट्र की राजनीति में हाल ही में एक बड़ा बदलाव आया है। 39 नेताओं ने नागपुर राजभवन में देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई में मंत्रिपद की शपथ ली, जिससे राज्य की सत्तारूढ़ महायुति सरकार का पहला कैबिनेट विस्तार पूरा हुआ।

इस विस्तार के बाद राज्य में नए समीकरण उभरने की संभावना है, जिनमें कुछ पुराने चेहरों की छुट्टी और नए नेताओं को मौके दिए गए हैं। साथ ही इस विस्तार में भाजपा, शिवसेना शिंदे गुट और एनसीपी अजित पवार गुट के बीच की राजनीतिक उलझने  भी सामने आई हैं।

यह विस्तार न केवल सत्तारूढ़ गठबंधन की अंदरूनी राजनीति को प्रभावित करेगा, बल्कि राज्य का  भविष्यवय  और शासन की दिशा को भी तय करेगा। आइए इस विस्तार की पूरी कहानी पर नजर डालते हैं और समझते हैं कि महाराष्ट्र में क्या कुछ बदलने वाला है।

कैबिनेट विस्तार में क्या हुआ बदलाव?

39 मंत्रियों ने ली शपथ

नागपुर राजभवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में कुल 39 नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ली। इनमें से भाजपा के 19, शिवसेना शिंदे गुट के 11 और एनसीपी अजित पवार गुट के 9 मंत्रियों को जगह दी गई। इस विस्तार के साथ ही महायुति सरकार ने राज्य में अपने कार्यकाल को मजबूत करने की कोशिश की है।

इस बार की कैबिनेट में खास बात यह रही कि कई नए चेहरों को अवसर दिया गया है, जबकि कुछ पुराने नेताओं को मंत्रिमंडल से बाहर किया गया है। यह कदम सत्ता के समीकरण को बदलने की कोशिश दिखाता है, जहां कुछ नेताओं की जगह नए लोगों ने ली है।

भ्रष्टाचार के आरोप वाले मंत्री 

एक और दिलचस्प पहलू यह है कि इस बार के विस्तार में कुछ ऐसे नेताओं को भी शामिल किया गया है जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। इनमें से दो प्रमुख नाम हसन मुश्रिफ और धननंजय मुंडे के हैं, जिनके खिलाफ ईडी (ED ) जांच कर रही है। ये दोनों नेता पहले विपक्ष में थे, लेकिन अब वे सत्तारूढ़ सरकार का हिस्सा बन गए हैं।

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इससे यह सवाल उठता है कि क्या सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे नेताओं को अवसर देकर राजनीति में कुछ नया संदेश देना चाहती है या फिर यह महज सत्ता के लिए एक कोई रणनीतिक कदम है?

पुराने मंत्रियों का पत्ता कटा

जहां एक ओर नए चेहरों को मौका मिला, वहीं कुछ अनुभवी नेताओं का पत्ता भी काट दिया गया। उदाहरण के लिए, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के बड़े नेता छगन भुजबल और दिलीप वलसे पाटिल को इस बार मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। यह संकेत है कि पार्टी ने अपनी राजनीति में बदलाव की दिशा तय की है।

इसी तरह, शिवसेना शिंदे गुट के नेता दीपक केसरकर भी मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं बन पाए। जबकि पहले उनके नाम पर चर्चा हो रही थी, अंततः उनकी जगह पर नए चेहरों को मौका मिला।

बीजेपी और शिंदे गुट के बीच समीकरण

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सबसे ज्यादा 132 सीटों के साथ जीत हासिल की थी, जबकि शिवसेना शिंदे गुट को 57 सीटें मिलीं। एनसीपी के अजित पवार गुट ने 41 सीटों पर जीत दर्ज की थी। यह चुनाव परिणाम संकेत दे रहे थे कि महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन के बीच एक नई राजनीति का जन्म हो सकता है।

फडणवीस के नेतृत्व में बीजेपी 

देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद, उनकी अगुवाई में बीजेपी ने स्पष्ट रूप से राज्य में अपने प्रभाव को मजबूत किया है। उनके साथ एकनाथ शिंदे डिप्टी सीएम बने, जबकि अजित पवार का डिप्टी सीएम पद पर बने रहना यह दिखाता है कि अजित पवार गुट को भी सरकार में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। हालांकि, यह व्यवस्था महायुति के भीतर की जटिलताओं को भी सामने लाती है, क्योंकि हर गुट अपने नेताओं को मंत्रिमंडल में स्थान दिलाने की कोशिश करेगा।

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नई कैबिनेट में क्या हो सकता है बदलाव?

फडणवीस ने शपथ ग्रहण समारोह के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा कि अगले दो दिनों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि कौन सा मंत्री कौन से विभाग का जिम्मा संभालेगा। इससे राज्य में प्रशासनिक बदलाव की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी, जिससे आगामी दिनों में सरकार के कामकाज में एक नई दिशा देखने को मिल सकती है।

एक बात साफ है कि इस विस्तार के बाद सत्ता और विपक्ष के बीच की राजनीति में उथल-पुथल जारी रहेगी। फडणवीस और शिंदे के गुट को अपने-अपने विधायकों को संतुष्ट करना होगा, ताकि सरकार स्थिर बनी रहे। साथ ही, अजित पवार गुट के लिए भी यह चुनौती है कि वह सरकार में अपने स्थान को मजबूत कर सके।

महाराष्ट्र के राजनीतिक समीकरण पर असर

महाराष्ट्र की राजनीति में अक्सर गठबंधनों का खेल चलता रहता है, और इस बार का कैबिनेट विस्तार भी उसी कड़ी का हिस्सा है। भाजपा, शिवसेना शिंदे गुट और एनसीपी अजित पवार गुट के बीच की राजनीतिक गणनाएं कई दशकों से राज्य की राजनीति को आकार दे रही हैं।

अब जबकि कई नए चेहरों को मौका मिला है, यह सवाल उठता है कि क्या ये नए नेता राज्य की राजनीति में कुछ नया और  बदलाव ला पाएंगे?

साथ ही, यह देखना भी दिलचस्प होगा कि भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे नेताओं की कैबिनेट में उपस्थिति राज्य की राजनीति को किस दिशा में ले जाती है। क्या यह सरकार और इन नेताओं के बीच गठबंधन को कमजोर करेगा या फिर सत्ता के लिए यह एक मजबूरी का हिस्सा बनेगा?

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