शिवरात्री और महाशिवरात्री में होता है बड़ा अंतर,क्यों खास होती है महाशिवरात्री,जानिए क्यों है दोनो मे अंतर

माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था।इस दिन भगवान शिव ने वैराग्य त्याग कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था।

  • महा शिवरात्रि किस पक्ष में पड़ती है
  • महाशिवरात्री क्यों मनाते है ?
  • मान्यता के अनुसार व्रत का विशेष महत्व
  • शिवरात्री और महाशिवरात्री में फर्क
  • महाशिवरात्री की पूजा का शुभ मुहूर्त

Maha Shivratri 2025 : भगवान शिव की कृपा प्राप्ति के लिए महाशिवरात्रि का त्योहार बेहद ही महत्वपूर्ण और खास माना जाता है। इस दिन भगवान शिव और जगत जननी माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए इस दिन से पार्वती की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है।यह भी माना जाता है।कि इस दिन जो भी शिवजी और पार्वती जी का व्रत पूरी श्रद्धा के साथ रहते हैं। उनकी हर मनोकामना पूरी होती है।

महा शिवरात्रि किस पक्ष में पड़ती है

पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर महाशिवरात्रि का व्रत रखा जाता है।शिवरात्रि हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ती है।लेकिन साल में एक शिवरात्रि ऐसी होती है

जिसे महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है।ये शिवरात्रि फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ती है।यह तिथि इस साल 26 फरवरी की सुबह 11 बजकर 8 मिनट पर शुरू होगी और इस तिथि का समापन 27 फरवरी की सुबह 8 बजकर 54 मिनट पर होगा।

महाशिवरात्री क्यों मनाते है ?

महाशिवरात्रि का अर्थ है ‘शिव की रात’. महाशिवरात्रि भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा प्रकट करने का एक विशेष अवसर माना जाता है।माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था।इस दिन भगवान शिव ने वैराग्य त्याग कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था।

Maha Shivratri 2025
Maha Shivratri 2025

उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने फाल्गुन महीने की कृष्ण चतुर्दशी को उनसे विवाह किया। इसलिए इस दिन को शिव और शक्ति के मिलन के रूप में भी मनाया जाता है। हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है।

मान्यता के अनुसार व्रत का विशेष महत्व

मान्यता है इस दिन सच्चे मन से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करने और व्रत रखने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह भी कहा जाता है जो कुंआरी लड़कियां शिवरात्रि का उपवास रखती हैं उन्हें मनचाहे पति की प्राप्ति होती है। वैसे तो हर महीने शिवरात्रि पड़ती है, लेकिन महाशिवरात्रि का विशेष महत्व होता है।

शिवरात्री और महाशिवरात्री में फर्क

महाशिवरात्रि और शिवरात्रि का पर्व दोनों ही भगवान शिव को समर्पित हैं, महाशिवरात्रि का पर्व सालभर में एक बार मनाया जाता है तो शिवरात्रि का हर माह पड़ती है।और शिवरात्रि हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, साल में 12 शिवरात्रि पड़ती हैं।

Maha Shivratri 2025
Maha Shivratri 2025

हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर मासिक शिवरात्रि मनाई जारी है। वहीं साल में फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर महाशिवरात्रि पड़ती है।साल में एक ही बार महाशिवरात्रि पड़ती है।

महाशिवरात्री की पूजा का शुभ मुहूर्त

शिवरात्रि पूजा का शुभ मुहूर्त 26 फरवरी की देर रात 12 बजकर 9 मिनट से 12 बजकर 59 मिनट तक रहेगा। इस दिन रात्रि के चारों पहर की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है।आज हम आपको चारो पहर की पूजा का समय बताएंगे।

  • रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय- 06:19 PM से 09:26 PM तक
  • रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय- 09:26 PM से 27 फरवरी को 12:34 AM तक
  • रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय- 27 फरवरी को 12:34 AM से 03:41 AM तक
  • रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय- 27 फरवरी को 03:41 AM से 06:48 AM तक
Maha Shivratri 2025
Maha Shivratri 2025

महाशिवरात्री पूजा विधि

  • प्रात:काल स्नान-ध्यान से निवृत हो शिवजी का स्मरण करते हुए व्रत एवं पूजा का संपल्प लेते है।
  • घर पर पूजा कर रहे हैं तो एक पाट पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर घट एवं कलश की स्थापना करें।
  • इसके बाद एक बड़ी सी थाली में शिवलिंग या शिवमूर्ति को स्थापित करके उस थाल को पाट पर रख ले
  • अब धूप दीप को प्रज्वलित करें। इसके बाद कलश की पूजा करें।
  • कलश पूजा के बाद शिवमूर्ति या शिवलिंग को जल से स्नान कराएं।
  • फिर पंचामृत से स्नान कराएं। पंचामृत के बाद पुन: जलाभिषेक करें।
  • फिर शिवजी के मस्तक पर चंदन, भस्म और लगाएं और फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाकर माला पहनाएं।
  • -पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी उंगली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से इत्र, गंध, चंदन आदि लगाना चाहिए।
  • इसके बाद 16 प्रकार की संपूर्ण सामग्री एक एक करके अर्पित करें।
  • पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं और प्रसाद अर्पित करें।
  • ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है।
  • नैवेद्य अर्पित करने के बाद अंत में शिवजी की आरती करें। आरती के बाद सभी को प्रसाद वितरित करे।

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